Wednesday, January 25, 2012

प्लीज़ क्रांति न करे कोई No Revolution

देश में आज अंग्रेज़ी राज नहीं है और उनके क़ानून में कुछ घटा बढ़ाकर हमने उसे अपना भी बना लिया है लेकिन हमें देखना होगा कि इस क़ानून का लाभ देश के ग़रीबों को कितना मिल रहा है ?
दहेज उत्पीड़न के एक मुक़ददमे को लड़ते हुए आज एक लड़की को चार साल हो गए हैं। हमने देखा है कि उसे अब तक न तो उसके पति से कोई खर्चा मिला है और न ही उसकी ससुराल से उसका सामान ही वापस मिला है। अभी कितने साल और लग जाएं इसका कोई अंदाज़ा नहीं है। ऐसे में ज़ालिम पक्ष को सज़ा दिलाने के लिए कौन कब तक लड़े और अपनी उम्र गंवाए ?

आम हालात यह हैं कि लोग पुलिस और अदालत के चक्कर से बचना बेहतर समझते हैं।
देश में क़ानून का होना ही काफ़ी नहीं है बल्कि उसका फ़ायदा अमीर और ग़रीब सबको मिले और न्याय तेज़ी के साथ हो, यह भी ज़रूरी है।
कुछ लोगों को फांसी का हुक्म दिया जा चुका है लेकिन उन्हें फांसी नहीं दी जा रही है। यह भी चिंता की बात है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनकी सज़ा पूरी हो चुकी है लेकिन उनके केस की पैरवी करने वाला कोई नहीं है। वे जेलों में बंद हैं।
आज 26 जनवरी है।
लोग ख़ुश हैं। ख़ुश होने की वजह भी है लेकिन जो लोग आज के दिन भी ख़ुश नहीं हैं उनके पास भी ग़मगीन होने की कुछ वजहें हैं। हमारा ख़ुश होना तब तक कोई मायने नहीं रखता जब तक कि हमारे दरम्यान ग़म के ऐसे मारे हुए मौजूद हैं जिनका ग़म हमारी मदद से दूर हो सकता है और हमारी मदद न मिलने की वजह से वह उनकी ज़िंदगी में बना हुआ है।
हमारे अंदर अनुशासन की भावना बढ़े, हम ख़ुद को अनुशासन में रखें और किसी भी परिस्थिति में शासन के लिए टकराव के हालात पैदा न करें।
जो लोग आए दिन धरने प्रदर्शन करते हुए शासन और प्रशासन से टकराते रहते हैं, उन्हें 26 जनवरी पर यह प्रण कर लेना चाहिए कि अब वे देश के क़ानून का सम्मान करेंगे और किसी अधिकारी से नहीं टकराएंगे बल्कि उनका सहयोग करेंगे।
टकराकर देश को बर्बाद न करें।
लोग अंग्रेज़ो से टकराए तो वे देश से चले गए और आज बहुत से लोग यह कहते हुए मिल जाएंगे कि देश में आज जो असुरक्षा के हालात हैं, ऐसे हालात अंग्रेज़ों के दौर में न थे।
कहीं ऐसा न हो कि फिर टकाराया जाए तो देश और गड्ढे में उतर जाए।
सो प्लीज़ हरेक आदमी यह भी प्रण करे कि अब हम क्रांति टाइप कोई काम नहीं करेंगे।
जो राज कर रहा है, उसे राज करने दो।
एक जाएगा तो दूसरा आ जाएगा।
अपना भला हमें ख़ुद ही सोचना है।
शासन करने वालों ने जनता की चिंता कम ही की है।
उनसे आशा ही न रखोगे तो निराशा भी न होगी।
जीवन को सकारात्मक विचारों से भरिए और सरकार और पब्लिक की शिकायतें करने के बजाय यह देखिए कि किसी को हमसे तो कोई शिकायत नहीं है।
इस बार 26 जनवरी को ऐसे मनाएं।

7 comments:

Atul Shrivastava said...

सही कहा आपने।
कोसने के बजाय उस स्थिति में सुधार करने की कोशिश करनी चाहिए। नकारात्‍मक भाव के बजाय सकारात्‍मकता से काम करना होगा... तभी गणतंत्र वास्‍तविक में सार्थक हो सकता है।

Ayaz ahmad said...

सही कहा आपने .

अमित वर्मा said...

साधनाओ के नए आयाम पर चर्चा तो करो,
जरुरत है लोगो किसी गुमनाम पर चर्चा तो करो।
हिंद वाले हिंद में रहकर विदेशी हो गए,
अब जरुरी है की इस इल्जाम पर चर्चा तो करो।

Rajesh Kumari said...

sabki soch sakaratmak hogi to desh ki halat bhi dheere dheere durust hogi.
achcha aalekh.

कुमार राधारमण said...

क़ानून बनाने और उस पर अमल का रास्ता सत्ता के गलियारों से ही खुलता है। सो सत्ता को उसकी गलतियों के लिए गरियाना जारी रहना चाहिए। दुर्भाग्य यह है कि स्वयं निरीह जनता भी कम दोषी नहीं है अपनी दशा के लिए। इसलिए,आत्म-अनुशासन की आपकी सीख बेहद अहम है। इसे अपनाकर ही हम उस शानो-शौकत का हिस्सा बन सकते हैं जिसका आज के दिन प्रदर्शन होता रहा है।

रविकर said...

आज के चर्चा मंच पर आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
का अवलोकन किया ||
बहुत बहुत बधाई ||

virendra sharma said...

कोऊ नृप भयऊ हमें का हानि इसी भावना ने मारा है हिन्दुस्तान को .