Tuesday, November 30, 2010

आईना ए दिल में होता है रब का दीदार सदा Urdu poem

अमित जी मेरे अनुज हैं और मुझसे प्यार करते हैं । हाँ , वे मुझसे तकरार भी करते हैं लेकिन उसकी हैसियत फ़क़त एक इल्मी बहस की होती है । ठीक ऐसे ही जैसे कि अदालत में दो वकील आपस में ज़ोरदार बहस करते हैं लेकिन उनके दरम्यान कोई नफ़रत या रंजिश नहीं होती । सच को साबित करने के लिए जो तर्क और सुबूत वे दे सकते हैं, वे देते हैं । इस तरह वे सच तक पहुँचने में अदालत की मदद करते हैं । जब महज़ पैसे की ख़ातिर इंसान इतना सत्यापेक्षी और द्वेष रहित व्यवहार कर सकता है तो फिर एक रब की ख़ातिर यही व्यवहार हम क्यों नहीं कर पाते ?
यह विचारणीय है ।
हम नहीं कर पाते हैं इसीलिए हमें सच अभी तक सामूहिक रूप से मयस्सर नहीं है , हमारी दुर्दशा इसका प्रमाण है ।

उद्धार हमारा मकसद है तो प्यार हमारा तरीका होना चाहिए , जैसे कि ब्राह्मण युवा अमित जी का तरीक़ा है और ख़ुद मेरा भी ।

अपने ब्लॉग पर उन्होंने मुझे प्यार और सम्मान देते हुए कुछ ऐसी पंक्तियाँ कही हैँ जो इससे पहले ब्लागजगत में कभी नहीं कही गईं । वास्तव मेँ ही वे अद्भुत हैं । उर्दू में इसे 'इल्मी करामत' कहा जाता हैं । हिन्दी में इसे साहित्यिक चमत्कार कहा जाएगा ।

... और साहिबान , जैसा कि आप जानते ही हैं कि मैं जवाब जरूर देता हूँ तो अब एक ब्राह्मण के प्यार का इस्लामी जवाब भी मुलाहिज़ा फ़रमाएं ।

रहता है जिसके दिल में प्यार सदा
वह करता है जग पर उपकार सदा

हैवाँ भी करते हैं अपनों से प्यार
इंसाँ ही गिराता है भेद की दीवार सदा

मख़्लूक़ में है सिफ़ाते ख़ालिक़ का परतौ
इश्क़े मजाज़ी से वा है हक़ीक़ी द्वार सदा

विराट में अर्श है जो, सूक्ष्म में क़ल्ब वही
यहीं होता है रब का दीदार सदा

किरदार आला, ज़ुबाँ शीरीं है अमित तेरी
ऐसे बंदों का होता जग में उद्धार सदा
............
मख़्लूक़ - सृष्टि , ख़ालिक़ - रचयिता , इश्क़े - मजाज़ी लाक्षणिक प्रेम जो किसी लौकिक वस्तु से किया जाए , वा - खुला , हक़ीक़ी - सच्चा , अर्श - सृष्टि का केंद्र जो सूक्ष्म जगत में हैं , जहां से समस्त चराचर जगत का निर्देशन और नियंत्रण हो रहा है । जीवन की ऊर्जा वहीं से आती है , जैसे कि सारे जिस्म को खून की सप्लाई दिल से होती है ।, हैवान पशु , शीरीं - मीठा

10 comments:

Shah Nawaz said...

रहता है जिसके दिल में प्यार सदा
वह करता है जग पर उपकार सदा


बढ़िया पंक्तियाँ हैं.... प्रेम की और बढ़ते हुए कदम सदा ही हसीं होते हैं...

DR. ANWER JAMAL said...

@ ऐ दिलबर दिल्ली, वाले तेरा शुक्रिया !

Unknown said...

badhiya baat.........

DR. ANWER JAMAL said...

@ अलबेला जी ! मैंने आपसे प्रतियोगिता के विषय में कुछ पूछा था आपने अभी जवाब नहीं दिया ?

Amit Sharma said...

आभारी हूँ आपका की आप मुझे अपना मानते है, आपका आशीर्वाद बना रहे !

DR. ANWER JAMAL said...

@ प्रिय मोहक मुस्कान स्वामी अमित जी ! आपके तकल्लुम मय तबस्सुम के लिए शुक्रिया .
आपके दाँत भी मोतियों की तरह हैं बिल्कुल आपकी बातों की तरह .

URDU SHAAYRI said...

भाई से भाई के कुछ तक़ाज़े भी हैं
सहन के बीच दीवार अपनी जगह

URDU SHAAYRI said...

nice post.

S.M.Masoom said...

विराट में अर्श है जो, सूक्ष्म में क़ल्ब वही
यहीं होता है रब का दीदार सदा
बहुत खूब

S.M.Masoom said...

बहुत खूब